2 लघु सत्य घटनाए

 


*चरित्र*


नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद, अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए । सबने अपनी अपनी पसंद के खाना का आर्डर दिया और खाना के आने का इंतजार करने लगे । 
उसी समय मंडेला की सीट के सामने एक व्यक्ति भी अपने खाने आने का इंतजार कर रहा था । मंडेला ने अपने सुरक्षा कर्मी को कहा उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो । ऐसा ही हुआ, खाना आने के बाद सभी खाने लगे, *वो आदमी भी अपना खाना खाने लगा, पर उसके हाथ खाते हुए कांप रहे थे।*
खाना खत्म कर वो आदमी सिर झुका कर होटल से निकल गया । उस आदमी के खाना खा के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा कि वो व्यक्ति शायद बहुत बीमार था, खाते वक़्त उसकी हाथ लगातार कांप रहे थे और वह कांप भी रहा था । 
मंडेला ने कहा नहीं  ऐसा नहीं है । *वह उस जेल का जेलर था, जिसमें मुझे रखा गया था । कभी मुझे जब यातनाएं दी जाती और मै कराहते हुवे पानी मांगता तो ये मेरे ऊपर पेशाब करता था ।*


मंडेला ने कहा *मै अब राष्ट्रपति बन गया हूं, उसने समझा कि मै भी उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करूंगा । पर मेरा यह चरित्र नहीं है । मुझे लगता है बदले की भावना से काम करना विनाश की ओर ले जाता है । वहीं धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है*


(2)


*पुण्य की कमाई* 


" टिकट कहाँ है ? " -- टी सी ने बर्थ के नीचे छिपी लगभग तेरह - चौदह साल की लडकी से पूछा ।"
नहीं है साहब।
"काँपती हुई हाथ जोड़े लडकी बोली।
"तो गाड़ी से उतरो।" टी सी ने कहा ।
*इसका टिकट मैं दे रहीं हूँ।............पीछे से ऊषा भट्टाचार्य की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी ।*
"तुम्हें कहाँ जाना है ?" लड़की से पूछा" पता नहीं मैम ! "" तब मेरे साथ चल बैंगलोर तक ! ""
तुम्हारा नाम क्या है ? "" चित्रा
"बैंगलोर पहुँच कर ऊषाजी ने चित्रा को अपनी एक पहचान के स्वंयसेवी संस्थान को सौंप दिया । और अच्छे स्कूल में एडमीशन करवा दिया। जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली होने की वजह से चित्रा से कभी-कभार फोन पर बात हो जाया करती थी ।करीब बीस साल बाद ऊषाजी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को (अमरीका) बुलाया गया । लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्सन पर गई तो पता चला पीछे खड़े एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल भर दिया था ।"तुमने मेरा बिल क्यों भरा ? ? ""
*मैम, यह बम्बई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ नहीं है ।*
""अरे चित्रा ! ! ? ? ? . . . .
चित्रा कोई और नहीं *इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन सुधा मुर्ति थी, एवं इंफोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति जी की पत्नी थी।*
यह उन्ही की लिखी पुस्तक "द डे आई स्टाॅप्ड ड्रिंकिंग मिल्क" से लिया गया कुछ अंश
*कभी कभी आपके द्वारा भी की गई सहायता किसी की जिन्दगी बदल सकती है।*
अगर कुछ कमाना है तो पुण्य अर्जित कीजिये क्योंकि यही वो मार्ग है जो स्वर्ग तक जाता है....!!!!😊😊


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